28 January 2020

5391 - 5395 तस्वीर रंग गर्दिश किताब कहानी ज़ख्म वक़्त शायरी


5391
उड़ जाएंगे एक दिन,
तस्वीरसे रंगोंकी तरह;
हम वक़्तकी टहनीपर,
बेठे हैं परिंदोंकी तरह l

5392
रुकी वक़्तकी गर्दिश,
और  ज़माना बदला...
पेड सुखा तो,
परींदोने ठिकाना बदला...

5393
बदल जाते हैं,
वक़्तकी तरह वो लोग l
जिन्हें हदसे ज्यादा,
वक़्त दिया जाता हैं ll

5394
वक़्तकी किताबमें,
कुछ पन्ने उलटना चाहता हूँ,
मैं जो कल था...
फिर वही बनना चाहता हूँ...!

5395
लोग कहते हैं कि वक़्त,
हर ज़ख्मको भर देता हैं...
पर किताबोंपर धूल ज़मनेसे,
कहानी बदल नहीं जाती.......

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