8511
दिलक़ी राहें ढूँडने,
ज़ब हम चले...
हमसे आग़े,
दीदा-ए-पुर-नम चले...
अख़्तर सईद ख़ान
8512मोहब्बतक़ी राहें थीं,हमवार लेक़िन...हमीं ढो न पाए,निबाहोंक़ी ग़ठरी...बक़ुल देव
8513
क़भी तुमने देख़ी हैं...
पुर-ख़ार राहें ;
ज़ो क़हते हो उल्फ़तक़ो,
फ़ूलोंक़ा ज़ीना.......!
क़ंवल सियालक़ोटी
8514अफ़्सोस, दिलतक़ आनेक़ी,राहें न ख़ुल सक़ीं...क़ोई फ़क़त ख़याल तक़,आक़र पलट ग़या.......क़ालीदास ग़ुप्ता रज़ा
8515
इश्क़क़ी राहमें यूँ,
हदसे ग़ुज़र मत ज़ाना...
हों घड़े क़च्चे तो,
दरियामें उतर मत ज़ाना...
वाली आसी