8481
इक़ दरपें सर झुक़ा लिया,
राहें बदल ग़ईं...
ज़ितनी बलाएँ सरपें थीं,
सारी ही टल ग़ईं.......
मोहसिन अहमद
8482रंग़ी रंग़ी इश्क़क़ी राहें,मंज़िल मंज़िल हुस्नक़े डेरे !सूफ़ी तबस्सुम
8483
एक़ मंज़िल हैं,
मुख़्तलिफ़ राहें...
रंग़ हैं बेशुमार,
फ़ूलोंक़े.......!
नईम जर्रार अहमद
8484सख़्त उलझी हैं,ज़ीस्तक़ी राहें...ज़ुल्फ़क़े पेच-ओ-ख़मक़ी,बात न क़र.......सूफ़ी तबस्सुम
8485
न ज़ाने क़ितनी ही राहें,
तलाश क़र बैठे...
तुम्हारे इश्क़क़ी क़ोई,
डग़र नहीं मिलती.......
सय्यद वासिफ़ हसन
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