8486
बहुत सूनी सूनी हैं,
लैलाक़ी राहें...
क़ि मज़नूँक़ा दिल,
बेसदा हो ग़या हैं.......
सालिक़ लख़नवी
8487पर्दे पर्देमें ये क़र लेती हैं,राहें क़्यूँक़र...पार हो ज़ाती हैं सीनेक़ी,निग़ाहें क़्यूँक़र.......रियाज़ ख़ैराबादी
8488
दूर रहा तो,
राहें देख़ें...!
पास आया तो,
आँख़ न ख़ोली...!!!
फ़र्रुख़ ज़ोहरा ग़िलानी
8489ज़िंदगीक़ी ज़ितनी भी,दुश्वार हैं राहें लेक़िन...आपक़े एक़ इशारेसे,ग़ुज़र ज़ाती हैं.......मुक़द्दस मालिक़
8490
ज़ज़्बात-ए-इश्क़ने,
नई राहें तलाश लीं...
अर्बाब-ए-हुस्नक़े भी,
बहाने बदल ग़ए.......
शाहीन भट्टी
No comments:
Post a Comment