6 April 2022

8466 - 8470 मुसाफ़िर धोख़ा आँख़ें आँसू ज़िंदग़ी तन्हा परछाई राह शायरी

 

8466
कुछ मुसाफ़िरोंक़ो मैंने,
राह भटक़ते देख़ा हैं...
मैंने शातिरक़ो भी,
धोख़ा ख़ाते देख़ा हैं...!

8467
ज़ब थक़ गई मेरी,
आँख़ें राह ताक़ते हुए...
तुझे फ़िर ढूंढने मेरी,
आँख़क़े आँसू निक़ले.......

8468
अदमक़े मुसाफ़िरो,
होशियार.......
राहमें ज़िंदग़ी ख़ड़ी होग़ी...!!!
                           साग़र सिद्दीक़ी

8469
क़ौन क़िसीक़ा होता हैं,
ज़िंदगीक़ी राहमें...
ज़ब अंधेरा होता हैं तो,
परछाई भी साथ छोड़ देती हैं...

8470
राह-ए-ज़िंदगी क़्या बताऊँ...
क़ैसे ग़ुज़र रही हैं...
शामें तन्हा हैं और रातें,
अक़ेली हो ग़यी हैं.......

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