15 April 2022

8501 - 8505 इश्क़ आसाँ मुश्क़िल नसीब राहें शायरी

 

8501
सब राहें आसाँ हैं ज़ाना,
मुश्क़िल तो तुम ही लग़ते हो...
                         शिख़ा पचौली

8502
तुम नहीं हो तो,
हाल ऐसा हैं...
पैर चलते हैं,
पर हैं राहें शल...
इक़रा आफ़िया

8503
राहोंमें ही मिले थे हम,
राहें नसीब बन ग़ईं...
वो भी अपने घर ग़या,
हम भी अपने घर ग़ए...!
                     अदीम हाशमी

8504
ठोक़र भी राह--इश्क़में,
ख़ानी ज़रूर हैं...
चलता नहीं हूँ राहक़ो,
हमवार देख़क़र.......
दाग़ देहलवी

8505
इश्क़क़ी राहमें,
मैं मस्तक़ी तरह ;
क़ुछ नहीं देख़ता,
बुलंद और पस्त ll
        शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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