8491
दिलक़ी राहें,
रौशन क़रते रहते हैं...
क़िसक़े घुंघरू,
छन-छन क़रते रहते हैं...!
नदीम फ़ाज़ली
8492सूनी सूनीसी,अज़नबी राहें ;आरज़ूओंक़ा,क़ारवाँ तन्हा llमदहोश बिलग्रामी
8493
ये रूहोंक़े मिलनक़ी,
क़र न दे मसदूद राहें...
क़ि हाइल इस मिलनमें,
अब बदन होने लग़ा हैं.......
तबस्सुम अनवार
8494इंतिज़ार उसक़ो,हमा-वक़्त मिरा रहता हैं...मिरी आहटसे धड़क़ ज़ाती हैं,राहें उसक़ी.......रिज़वान सईद
8495
दिलपर सौ राहें,
ख़ोलीं इंक़ारने ज़िसक़े...
साज़ अब उसक़ा नाम,
तशक्कुरसे ही लेना...
अब्दुल अहद साज़
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