8526
राहें बनाक़े,
आग़े निक़ल ज़ाना चाहिए l
अब तो ज़दीद साँचेमें,
ढल ज़ाना चाहिए.......ll
ज़ुबैर बहादुर ज़ोश
8527अज़नबी राहें भी सादिक़,अज़नबी राहें न थीं...lज़ब क़िसीक़े ज़ाने-पहचाने,नुक़ूश-ए-पा मिले.......llसादिक़ नसीम
8528
धूप क़ाफ़ी,
दूरतक़ थी राहमें l
लम्हा लम्हा हो ग़या,
पैक़र सियाह ll
अम्बर शमीम
8529रह-ए-क़रार,अज़ब राह-ए-बेक़रारी हैं...रुक़े हुए हैं मुसाफ़िर,सफ़र भी ज़ारी हैं.......राम अवतार ग़ुप्ता मुज़्तर
8530
इसी हसरतमें,
क़टी राह-ए-हयात...l
क़ोई दो-चार क़दम,
साथ चले.......ll
अख़्तर लख़नवी
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