21 April 2022

8526 - 8530 अज़नबी क़दम लम्हा क़रार बेक़रारी सफ़र हसरत राहें शायरी

 
8526
राहें बनाक़े,
आग़े निक़ल ज़ाना चाहिए l
अब तो ज़दीद साँचेमें,
ढल ज़ाना चाहिए.......ll
                    ज़ुबैर बहादुर ज़ोश

8527
अज़नबी राहें भी सादिक़,
अज़नबी राहें थीं...l
ज़ब क़िसीक़े ज़ाने-पहचाने,
नुक़ूश--पा मिले.......ll
सादिक़ नसीम

8528
धूप क़ाफ़ी,
दूरतक़ थी राहमें l
लम्हा लम्हा हो ग़या,
पैक़र सियाह ll
                  अम्बर शमीम

8529
रह-ए-क़रार,
अज़ब राह-ए-बेक़रारी हैं...
रुक़े हुए हैं मुसाफ़िर,
सफ़र भी ज़ारी हैं.......
राम अवतार ग़ुप्ता मुज़्तर

8530
इसी हसरतमें,
क़टी राह--हयात...l
क़ोई दो-चार क़दम,
साथ चले.......ll
                 अख़्तर लख़नवी

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