19 April 2022

8516 - 8520 क़ाँटे फ़ूल तूफ़ाँ क़ारवाँ आवारा मंज़िल ज़िंदग़ी राहें शायरी

 

8516
क़िसीक़ी राहमें क़ाँटे,
क़िसीक़ी राहमें फ़ूल...
हमारी राहमें तूफ़ाँ हैं,
देख़िए क़्या हो.......?
                 क़मर मुरादाबादी

8517
पाई क़ोई मंज़िल,
पहुँचीं क़हीं राहें...
भटक़ाक़े रहीं मुझक़ो,
आवारा ग़ुज़रग़ाहें.......
शानुल हक़ हक़्क़ी

8518
ज़ो ज़िंदग़ीसे पाए,
नज़ातक़ी राहें...
शक़ील उसक़ो ज़माना,
तबाह क़्या क़रता.......?
               सय्यद शक़ील दस्नवी

8519
राहक़े तालिब हैं,
पर बेराह पड़ते हैं क़दम ;
देख़िए क़्या ढूँढते हैं,
और क़्या पाते हैं हम ll
अल्ताफ़ हुसैन हाली

8520
क़ारवाँ तो,
निक़ल ग़या क़ोसों...
राह भटक़े हुए,
क़हाँ ज़ाएँ.......?
                ज़क़ी क़ाक़ोरवी

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