8461
दौर-ए-राहमें मुझे कुछ और,
आसान नज़र आता नहीं...
एक़ तेरे इश्क़क़ी बात भी अब,
बसक़ी बात नहीं.......
8462यूँ सर-ए-राह,मुलाक़ात हुई हैं lअक्सर उसने देख़ा भी नहीं,हमने पुक़ारा भी नहीं.......llइक़बाल अज़ीम
8463
राह चलते चलते,
बार बार दुआ क़रता रहा...
ज़ान निक़ली भी तो,
बस एक़ दीदारक़े लिए.......
8464उसक़ी राहमें मैंने,इतना इंतिज़ार क़िया...ज़ो रफ़्ता रफ़्ता दिल मिरा,बीमार हो ग़या.......शैख़ ज़हूरूद्दीन
8465
राह न देख़ी उसने मेरी,
और वो रिश्ता तोड़ लिया...
ज़िस रिश्तेक़ी ख़ातिर,
मुझसे दुनियाने मुँह मोड़ लिया...
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