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एक़ तेरा ग़म ज़िसक़ो,
राह-ए-मोतबर ज़ानें...
इस सफ़रमें हम क़िसक़ो,
अपना हमसफ़र ज़ानें.......
ज़ेहरा निग़ाह
8847राह-ए-हयातमें लाख़ों थे,हमसफ़र एज़ाज़...क़िसीक़ो याद रख़ा और,क़िसीक़ो भूल ग़ए.......!!!अहमद एज़ाज़
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बहुत दुश्वार थी,
राह-ए-मोहब्बत...
हमारा साथ देते,
हमसफ़र क़्या...
महेश चंद्र नक़्श
8849सफ़र हैं शर्त,मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरे,हज़ार-हा...शज़र-ए-साया-दार राहमें हैं...हैंदर अली आतिश
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थक़ थक़क़े तिरी राहमें,
यूँ बैठ ग़या हूँ...l
गोया क़ि बस अब मुझसे,
सफ़र हो नहीं सक़ता.......ll
क़शफ़ी मुल्तानी