3 September 2017

1701 - 1705 दिल मुआवज़े अर्जी ग़मकी बारिश तबाह भीतर धूप सुगंध ओढ़नी संसार पता शाम शायरी


1701
मैने भी अर्जी दे डाली हैं,
मुआवज़ेकी ,
उसके ग़मकी बारिशने,
खूब तबाह किया हैं भीतरसे मुझे...

1702
आज धूप सुगंधित हो गई,
लगता हैं...
तुम्हारी ओढ़नी सुख रही हैं ।

1703
ढूंढा सारे संसारमें,
पाया पता तेरा नहीं;
जब पता तेरा लगा,
अब पता मेरा नहीं।

1704
शाम ढले ये सोचके बैठे हम,
उनकी तस्वीरके पास l
सारी ग़ज़लें बैठी होगी,
अपने-अपने "मीर" के पास...

1705
जिससेभी दिल लगाओ,
इस दुनियाँमें सोचसमझकर लगाना ;
क्योंकि ये दुनियाँवाले, बेरहम...
सबसे पहले दिलही तोडते हैं.......

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