10 September 2017

1721 - 1725 दिल प्यार इश्क ज़िंदगी दुनियाँ एहमियत चाँद चाँदनी गिनती ज़ख्म बेहिसाब कमज़ोर शायरी


1721
चाँदकी एहमियत चाँदनी ही जाने,
सागरकी लहरोंकी एहमियत किनारा ही जाने,
आपकी ज़िंदगीमें हमारी एहमियत क्या हैं,
वो तो आपका प्यारभरा दिल ही जाने......

1722
गिनतीमें ज़रा कमज़ोर हूँ…
ज़ख्म बेहिसाब ना दिया करो…

1723
सब कुछ हासिल नहीं होता,
ज़िन्दगीमें यहाँ,
किसीका "काश" तो
किसीका "गर" छूट ही जाता हैं...

1724
उसके इंतजारके मारे हैं हम...
बस उसकी यादोंके सहारे हैं हम...
दुनियाँ जीतके करना क्या हैं अब..??
जिसे दुनियाँसे जीतना था,
आज उसीसे हारे हैं हम...

1725
मैने जान बचाके रखी हैं,
एक जानके लिए ,
इतना इश्क कैसे हो गया,
एक अनजानके लिए…!

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