1771
हमें न मोहब्बत मिली, न प्यार मिला;
हमको जो भी मिला, बेवफा यार मिला!
अपनी तो बन गई तमाशा ए ज़िन्दगी;
हर कोई अपने मकसदका तलबगार मिला...
1772
तू मुझसे बस,
इतनीसी मोहब्बत निभा दे दे;
जब मैं रुठु तो,
तू मुझे मना लेना . . . !
1773
अजीब सबूत माँगा उसने,
मेरी मोहब्बतका,
कि मुझे भूल जाओ...
तो मानूँ मोहब्बत हैं !
1774
नज़रें चुराऊँ उनसे,
तो दिल बहकने लगता हैं...
नजरें मिलाऊँ उनसे,
तो दिल धड़कने लगता हैं.......
1775
“ए पलक तु बन्द हो जा,
ख्बाबोंमें उसकी सूरत तो नजर आयेगी;
इन्तजार तो सुबह दुबारा शुरू होगी,
कमसे कम रात तो खुशीसे कट जायेगी !”
No comments:
Post a Comment