22 September 2017

1771 - 1775 दिल मोहब्बत प्यार बेवफा यार तमाशा मकसद तलबगार अजीब सबूत नज़रें शायरी


1771
हमें न मोहब्बत मिली, न प्यार मिला;
हमको जो भी मिला, बेवफा यार मिला!
अपनी तो बन गई तमाशा ए ज़िन्दगी;
हर कोई अपने मकसदका तलबगार मिला...

1772
तू मुझसे बस,
इतनीसी मोहब्बत निभा दे दे;
जब मैं रुठु तो,
 तू मुझे मना लेना . . . !

1773
अजीब सबूत माँगा उसने,
मेरी मोहब्बतका,
कि मुझे भूल जाओ...
तो मानूँ मोहब्बत हैं !

1774
नज़रें चुराऊँ उनसे,
तो दिल बहकने लगता हैं...
नजरें मिलाऊँ उनसे,
तो दिल धड़कने लगता हैं.......

1775
“ए पलक तु बन्‍द हो जा,
ख्‍बाबोंमें उसकी सूरत तो नजर आयेगी;
इन्‍तजार तो सुबह दुबारा शुरू होगी,
कमसे कम रात तो खुशीसे कट जायेगी !”

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