18 September 2017

1751 - 1755 इश्क़ ख़्वाबका ख़याल आँख़ लाजिमी सोच तरीके बात लफ़्ज़ लब वार कातिल शायरी


1751
इश्क़में ख़्वाबका ख़याल,
किसे न लगी आँख़...
जबसे आँख़ लगी...!
                मीर मोहम्मद हयात हसरत

1752
लाजिमी नहीं की आपको,
आँख़ोंसे ही देख़ुं...
आपको सोचना आपके,
दीदारसे कम नहीं.......!

1753
इश्क़ न होनेके,
सिर्फ दो तरीके हैं...
या तो दिल न बना होता,
या तुम ना बनी होती !

1754
आँख़ोंकी बात हैं,
आँख़ोंको ही कहने दो,
कुछ लफ़्ज़ लबोंपर,
मैले हो जाते हैं...

1755
वार तो आप किये जा रहीं हैं...
और कातिल हमें कहे जा रहीं हैं...!!!

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