16 September 2017

1741 - 1745 दिल मोहब्बत बेफ़िक्री बेपनाह चाहत नतीजा ख़ुमार एहसास मन्ज़िल मक़सद रास्ता शर्त ग़म हिस्सा शायरी


1741
ये जो उनकी बेफ़िक्री हैं,
ये हमारी ही बेपनाह चाहतका नतीजा हैं...

1742
मोहब्बतका ख़ुमार उतरा तो,
ये एहसास हुआ;
जिसे मन्ज़िल समझते थे,
वो तो बे-मक़सद रास्ता निकला...

1743
एक ही शर्तपें बाटूँगा खुशी...
तेरे ग़ममें मेरा हिस्सा होगा...!

1744
सुबह सुबह चले आते हो
आँख खुलते ही खयालोंमें,
लगता हैं बेरोजगार हो तुम भी
मेरे दिलकी तरह !!

1745
सैंकडों आँसू मेरी,
आँखोंकी हिरासतमें थे...
इक उसका नाम क़्या आया और...
इनको ज़मानत मिल गयी...

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