14 September 2017

1736 - 1740 ज़िंदगी कश्ती तूफान शमा मायुस इरादे किस्मत वक़्त शख्शियत यार चट्टान मुसीबत झरना शायरी


1736
कश्ती तूफानसे निकल सकती हैं,
शमा बुझके भी जल सकती हैं,
मायुस ना हो, इरादे ना बदल ज़िंदगीमें,
किस्मत किसीभी वक़्त बदल सकती हैं !

1737
निखरती हैं मुसीबतोंसे ही,
शख्शियत यारों...
जो चट्टानोसे ही ना उलझे,
वह झरना किस काम का ?

1738
ए खुदा,
तुजसे एक सवाल हैं मेरा…
उसके चहेरे क्यूँ नहीं बदलते ???
जो इन्सान बदल जाते हैं..... !!!

1739
कभी धूप दे, कभी बदलियाँ,
दिलो जानसे दोनों क़ुबूल हैं,
मग़र उस नगरमें ना कैद कर,
जहाँ ज़िन्दगीकी हवा ना हो...

1740
ताल्लुक कौन रखता हैं,
किसी नाकामसे लेकिन.......
मिले जो कामयाबी...
सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं...
मेरी खूबीपें रहते हैं यहां,
अहले ज़बान खामोश.......

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