1766
किताबका नाम यूँ ही,
'मेरी आत्मकथा' रखा हैं,
बाकी इसके हर एक पन्नोंपर,
नाम तो सिर्फ उनका ही लिखा हैं...!
1767
बड़े प्यारे होते हैं न ऐसे रिश्ते.......
जिनपर कोई हक़ भी न हो
और शक भी न हो...!!!
1768
जिन्दगीने मेरे मर्जका,
एक बढीयाँसा इलाज बताया...
वक्तको दवा कहा और,
ख्वाहिशोंका परहेज बताया...!!!
1769
हर एक लकीर,
एक तजुर्बा हैं जनाब,,,
झुर्रियाँ चेहरोंपर,
यूँ ही आया नहीं करती...!
1770
आरामसे कट रही थी,
तो अच्छी थी,
जिंदगी तू कहाँ,
उनकी आँखोंकी बातोंमें आ गयी...!
No comments:
Post a Comment