20 September 2017

1761 - 1765 दिल दीवानगी उधार किश्तें अदा जरुरत हुनर राज रविश तरीका साथ शायरी


1761
मेरी दीवानगीका उधार,
उन्हे चुकानेकी जरुरत नहीं हैं,
मैं उन्हे देखता हूँ और,
किश्तें अदा हो जाती हैं...!

1762
कोई हुनर, कोई राज, कोई रविश,
कोई तो तरीका बताओके.......
दिल टूटे भी ना, साथ छूटे भी ना, कोई रूठे भी ना...
और जिंदगी गुजर जाऐ . . . . . . .

1763
ना दर्दने किसीको सताया होता,
ना आँखोंने किसीको रुलाया होता,
खुशी ही खुशी होती हर जगह अगर...
बनाने वालेने दिल ही न बनाया होता.......

1764
तहजीब सिखादी मुझे,
एक छोटेसे मकानने,
दरवाजेपर लिखा था,
"थोडा झुककर चलिये..."

1765
बड़ी हसरतसे सर पटक पटकके गुजर गई,
कल शाम मेरे शहरसे आँधी ।।
वो पेड़ आज भी मुस्कुरा रहें हैं,
जिन्हें हुनर था थोडा झुक जानेका ।।

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