3 July 2019

4446 - 4450 इश्क़ दुनिया कोशिश जुदा वादा याद ज़हर जख्म इंतहा हौसले मुस्कुरा दर्द शायरी


4446
बेदर्द दुनियामें अभी जीना सीख रहा हूँ,
अभी तो मैं दुखोंके जाम पीना सीख रहा हूँ...
कोशिश करूंगा तुम्हे मैं भी भुलानेकी,
अभी तो मैं तेरे झूठे वादोंको भुलाना सीख रहा हूँ...

4447
दर्द देकर इश्क़ने हमे रुला दिया,
जिसपर मरते थे उसने ही हमे भुला दिया;
हम तो उनकी यादोंमें ही जी लेते थे,
मगर उन्होने तो यादोंमें ही ज़हर मिला दिया...

4448
बहुत जुदा हैं औरोसे,
मेरे दर्दकी कहानी...
जख्मका कोई निशां नहीं,
और दर्दकी कोई इंतहा नहीं...!

4449
दर्द सबके एक मगर...
हौसले सबके अलग अलग हैं;
कोई बिखरके मुस्कुराया तो,
कोई मुस्कुराके बिखर गया...

4450
नियम निभाना तो कोई,
इश्क़से सीखे...
ये कल भी दर्द देता था,
ये आज भी दर्द देता हैं.......

No comments:

Post a Comment