4461
मुहोब्बतमें हुए बर्बाद
शायरोंमें,
मेरा
नाम आया;
उन्होंने
दिया हुआ दर्द
देखे,
मेरे कितना
काम आया...!
4462
तुम्हारे
पैरोमें,
दर्द
नहीं होता क्या...
सारा दिन मेरे
खयालोंमें,
घूमती
रहती हो.......!
4463
दर्द मीठा हो
तो,
रूक रूकके कसक होती
हैं...
याद गहरी हो
तो,
थम थमके करार आता
हैं...!
4464
इशरत-ए-क़तरा
हैं,
दरियामें फ़ना
हो जाना...
दर्दका हदसे गुज़रना हैं,
दवा हो जाना.......!
4465
मुहोब्बत
कभी खत्म नहीं
होती,
सिर्फ बढ़ती
हैं;
या तो सुकून
बनकर,
या दर्द
बनकर.......!
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