4456
हमने काँटोको भी,
नरमीसे छुआ हैं अक्सर...
लोग बेदर्द हैं,
फूलोको मसल देते
हैं...
4457
न आँखोंसे छलकते
हैं,
न कागजपर उतरते हैं...
कुछ दर्द ऐसे
भी होते हैं,
जो बस भीतर
ही पलते हैं...
4458
तुम दर्द देकर
भी,
कितने अच्छे
लगते हो सनम...
ख़ुदा जाने तुम
हमदर्द होते,
तो
क्या होता.......!
4459
थोड़ा तो आँसुओंके साथ,
बाहर
निकल ए दर्द...
इतना भी क्यूँ...
जिद्दी बना बैठा
हैं सीनेमें...
4460
दर्द ही हैं,
जो जिन्दा रखे
हुए हैं वरना...
ख़ुशीके मारे तो...
लोग अक्सर मर
जाया करते हैं...!
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