1 July 2019

4441 - 4445 ज़िन्दगी मुस्कुरा मुहब्बत चाह बेरुखी बेफिक्र शौक तलब याद दर्द आदत शायरी


4441
बेफिक्रसी सुबह,
और गुनगुनाहट शामोंकी...
ज़िन्दगी खूबसूरत हैं अगर,
आदत हो मुस्कुरानेकी...

4442
आदत उनकी कुछ,
इस तरह हो गयी...
उनकी बेरुखीसे भी,
मुहब्बत हो गयी.......

4443
दूर हो जानेकी तलब हैं,
तो शौकसे जा...
बस याद रहे की मुड़कर देखनेकी आदत,
इधर भी नही.......

4444
दर्द सहनेकी अब,
कुछ यूँ आदत सी हो गयी हैं कि...
अब दर्द मिले तो,
दर्दसा होता हैं.......

4445
बहुत कुछ बदला हैं,
मैने अपने आपमें, मगर...
तुम्हें वो टूटकर चाहनेकी आदत,
अब तक नहीं बदली.......

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