2791
लिखना हैं कुछ
मुझे भी,
गहरासा फ़राज़ l
जिसे पढ़े कोई
भी...
समझ बस तुम
जाओ.......!
2792
ग़ज़ल भी मेरी
हैं,
पेशकश भी
मेरी हैं;
मगर लफ्ज़ोमें छुपके जो बैठी
हैं,
वो बात
तेरी हैं.......!
2793
वाह् फ़राज़ बड़ी
जल्दी,
खयाल आया
हमारा।
बस भी करो
अब चूमना...
उठने भी दो
अब जनाजा मेरा.......!
2794
सुना था... कुछ
पानेके लिए,
कुछ खोना पड़ता
हैं।
पता नहीं... मुझे खोकर,
उसने क्या पाया.......!
2795
कोशिश न कर,
खुश सभीको
रखनेकी,
कुछ लोगोंकी
नाराजगी भी जरूरी
हैं,
चर्चामें बने
रहनेके लिए
।।