2856
आधा बुझा दिन
मिलता हैं,
आधी
जली रातसे,
और वो कहते
हैं की,
क्या
खुबसुरतसी शाम
हैं।
2857
काग़ज़पें तो,
अदालत चलती हैं...
हमने तो तेरी
आँखोंके,
फैसले
मंजूर किये।
2858
दिलसे पूछो
तो,
आज भी
तुम मेरे ही
हो...
ये ओर बात
हैं कि,
किस्मत
दग़ा कर गयी।
2859
हँसी यूँ ही
नहीं आई,
इस
खामोश चेहरेपर...
कई जख्मोंको सीनेमें,
दबाकर रख
दिया हैं हमने...
2860
शायद ये ज़माना,
उन्हें भी पूजने
लगे,
कुछ लोग इसी
ख़यालसे,
पत्थरके होने लगे.......