30 May 2018

2816 - 2820 दिल मोहब्बत बस्ती पाँव छाले ग़म एहसास तितली ज़ख़्म आहिस्ता चाह फासले अजीब शायरी



2816
चलते चलते मुझसे पूछा,
मेरे पाँवके छालोने,
बस्ती कितनी दूर बसा ली,
दिलमें बसने वालोने !

2817
मोहब्बत एकदम,
ग़मका एहसास होने नहीं देती...
ये तितली बैठती हैं,
ज़ख़्मपर आहिस्ता-आहिस्ता...

2818
शीशेमें डूबकर ,
पीते रहे उस जामको;
कोशिशे तो बहूत की मगर,
भूला पाए एक नामको.......

2819
मिलने की चाह यूँ है की,
अभी जाये आपसे मिलने...
कम्बख्त ये फासले भी,
बडे अजीब हैं.......

2820
नजरे छुपा कर क्या मिलेगा ?
नजरे मिलाओ शायद हम मिल जाएगे !!!

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