12 May 2018

2721 - 2725 दिल इश्क़ महबूब रूहानी सौग़ात सुराख रिश्ते मुहब्बत चाह फितरत वजह दुश्मन अजीब मंज़र शायरी



2721
रूहानी इश्क़की,
ये सौग़ात कैसी...
वो कुछ कहते भी नहीं और,
दिल सुन लेता हैं.......!

2722
सुराख क्या हुआ,
जेबमें मेरी...
कमबख्त पैसोंके साथ,
रिश्ते भी गिर गए.......

2723
चाँद तेरी मुहब्बततो,
मुझसे भी बडी हैं ;
वो कौन हैं जिसके लिए,
तू जागता हैं रातभर...

2724
तुमको चाहने कि वझह...
कुछ भी नहीं ;
श्क़की फितरत हैं,
बेवजह होना.......!

2725
आज अजीबसा मंज़र देखा,
दुश्मन मेरे पास आके बोला,
तेरे महबूबसे तो मैं ही अच्छा था...
देख तो सही तेरा महबूब,
तेरा क्या हाल कर गया...।।

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