6 May 2018

2701 - 2705 प्यार चाह बेखबर वक़्त उम्मीद इंतज़ार मोहब्बत एहसास अहसान सितम खामोश शायरी


2701
एक उमर बीत चली हैं,
तुझे चाहते हुए.......!
और तू आज भी बेखबर हैं,
कलकी तरह..............!

2702
"मत दे दुआ किसीको,
अपनी उमर लगनेकी,
यहाँ ऐसे भी लोग हैं,
जो तेरे लिए जिन्दा हैं...!"

2703
वक़्त कह रहा हैं,
कि अब वो आएगी वापस...
उम्मीद कह रही हैं,
ज़रा और इंतज़ार कर.......!
मोहब्बत कभी कम हीं होती...!

2704
प्यार आज भी तुझसे
उतना ही हैं...
बस तुझे एहसास नहीं और,
हमने भी जताना छोड़ दिया.......

2705
अहसान तो उनका,
हम अब भी मानते हैं सितमगर;
आखिर उनका खामोश हो जाना ही,
तो हमें शायर बना गया...!

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