10 May 2018

2716 - 2720 दिल नज़र पलकें चराग वजूद इत्तिफ़ाक़ शमां महक बेइँतहा ख्वाहिश कोशिश नजाकत भरोसा शायरी


2716
नज़र--बदसे बचना हैं,
तो कहीं और चले जाओ;
में तुझे देखता हूँ...
तो पलकें झपकती ही नहीं !

2717
हवाओंसे भी लड़ती हैं,
एक चरागके वजूदकी खातिर...
शमां' में मां सुनाई देना,
महज एक इत्तिफ़ाक़ नहीं.......

2718
मिट्टीका बना हूँ,
महक उठूंगा.......
बस तू एक बार बेइँतहा,
'बरस' के तो देख.......!

2719
वक्तको कैद करनेकी ख्वाहिश,
दिल ही दिलमें रह गयी;
कोशिश जीनेकी बहुत की, मगर...
जिंदगी पेट भरनेमें ही ढह गयी !

2720
नजाकत तो देखिये...
सूखे पत्तेने डालीसे कहा,
चुपकेसे अलग करना...
वरना लोगोंका रिश्तोंसे,
भरोसा उठ जायेगा... !

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