2926
सबूत गुनाहोंके होते
हैं...
अपनी बेगुनाह मोहब्बतका,
क्या सबूत दू.......!
2927
हर रोज कुछ
कहना लाज़मी नहीं,
पर ये जान
लो...
तुम ही हो
जिसको इस दिलमें,
खास जगह दी हैं.......!
2928
लाजमी तो नही
हैं,
कि तुझे
आँखोंसे ही
देखूँ;
तेरी यादका
आना भी,
तेरे
दीदारसे कम
नही...!!
2929
जो तू चाहती
हो,
तो ये
जुदाई भी सह
लेंगे;
तू सजा महफ़िल,
हम तन्हा रह
लेंगे.......
2930
बहुत मसरूफ़ हो शायद,
जो हम को
भूल बैठे हो;
न ये पूछा
कहाँपें हो,
न यह जाना
के कैसे हो...