26 June 2018

2926 - 2930 दिल मोहब्बत प्यार जान सबूत गुनाह लाज़मी जुदाई तन्हा सजा महफ़िल मसरूफ़ शायरी हैंहींपें


2926
सबूत गुनाहोंके होते हैं...
अपनी बेगुनाह मोहब्बतका,
क्या सबूत दू.......!

2927
हर रोज कुछ कहना लाज़मी नहीं,
पर ये जान लो...
तुम ही हो जिसको इस दिलमें,
खास जगह दी हैं.......!

2928
लाजमी तो नही हैं,
कि तुझे आँखोंसे ही देखूँ;
तेरी यादका आना भी,
तेरे दीदारसे कम नही...!!

2929
जो तू चाहती हो,
तो ये जुदाई भी सह लेंगे;
तू सजा महफ़िल,
हम तन्हा रह लेंगे.......

2930
बहुत मसरूफ़ हो शायद,
जो हम को भूल बैठे हो;
ये पूछा कहाँपें हो,
यह जाना के कैसे हो...

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