13 June 2018

2866 - 2870 जिंदगी मुसाफ़िर आँख कश्ती पागल आँसूं अदा आदत रग होंठ शायरी


2866
जिंदगी, मैं भी
मुसाफ़िर हूँ... तेरी कश्तीका,
तू जहाँ मुझसे कहेगी,
मैं उतर जाऊँगा !

2867
उनकी आँखोंमें समा जाऊँगा,
जलकी तरह,
वो ढूँढती रह जायेगी मुझे,
पागलकी तरह.......!

2868
आँसूं तब नहीं आते,
जब आप किसीको खो देते हो,
आँसूं तब आते हैं,
जब खुदको खोकर भी...
किसीको पा नहीं सकते...!

2869
तेरी अदा समझमें आती हैं,
ना आदत...
ज़िन्दगी,
तू हर रोज़ नयी सी, और...
मैं हर रोज़ वही उलझासा...!

2870
काश ! मैं भी
पानीका एक घूँट होता...
तेरे होंठोंसे लगता...
और तेरी रग-रगमें समा जाता...!

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