20 June 2018

2901 - 2905 जिंदगी तकदीर जुल्फ बूंदे आँख साँस ज़ख्म पलक बारिश कयामत मतलब रूठ इश्क चाहत बेमिसाल इबादत शायरी


2901
काश तकदीर भी होती,
जुल्फोंकी तरह,
जब जब बिखरती,
तब तब संवार लेते...!

2902
आँखोंके छोरपर,
सुबह कुछ बूंदे अटकी थी;
लगता हैं रात पलकोतले...
खूब बारिश हुई हैं !

2903
आज मुझसे पूछा उसने,
कयामतका मतलब...
और मैने घबराके कह दिया,
जान,  'रूठ जाना तेरा'.......

2904
जरूरी नहीं जो,
शायरी करे उसे इश्क ही हो;
जिंदगी भी कुछ ज़ख्म,
बेमिसाल देती हैं.......

2905
चाहत बन गये हैं वो,
कि आदत बन गये हैं वो...!
हर साँसमें यू आते जाते हो,
जैसे मेरी इबादत बन गये हैं वो...!

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