29 June 2018

2941 - 2945 दिल मोहब्बत याद वादा हरजाई आदत नाराज हकीकत फ़ुरसत इंतजार गरूर हैरत जुर्म लम्हे जवाब शायरी


2941
उसे हम याद आते हैं,
फ़ुरसतके लम्होंमें,
मगर...
ये भी हकीकत हैं,
उसे फ़ुरसत नहीं मिलती...!

2942
कहाँसे लाऊँ हुनर उसे मनानेका,
कोई जवाब नहीं था उसके रूठ जानेका;
मोहब्बतमें सजा मुझे ही मिलनी थी,
क्योंकि जुर्म मेरा था उनसे दिल लगानेका।

2943
वादा करके वो निभाना भूल जाते हैं,
लगाकर आग फिर वो बुझाना भूल जाते हैं;
ऐसी आदत हो गयी हैं अब तो उस हरजाईकी,
रुलाते तो हैं मगर मनाना भूल जाते हैं।

2944
नाराजगीका दौर भी,
थम जाएगा एक दिन;
करोगे इंतजार,
जहांसे हम गुजरा करते थे...

2945
वो खुदपर गरूर करते हैं,
तो इसमें हैरतकी कोई बात नहीं...
जिन्हें हम चाहते हैं,
वो आम हो ही नहीं सकते...!

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