2961
उम्र ज़ाया कर दी,
औरोंके वजूदमें नुक़्स
निकालते निकालते,
इतना खुदको
तराशा होता,
तो फ़रिश्ते हो जाते.......!
2962
जब किसीमें
भी,
कुछ अच्छा नज़र नहीं
आता हो...
तब समज लेना
की,
खुदमें कुछ
बुरा ढुंढनेका
समय आ गया
हैं...!
2963
मैं पेड़ हूँ,
हर रोज़ गिरते
हैं पत्ते मेरे l
फिर भी हवाओंसे,
बदलते नहीं
रिश्ते मेरे...॥
2964
ख्वाहिश नहीं मुझे मशहुर होनेकी,
आप मुझे पहचानते हो,
बस इतना ही काफी हैं l
अच्छेने अच्छा और बुरेने बुरा जाना मुझे,
क्योंकी जिसकी जितनी
जरुरत थी,
उसने उतना ही पहचाना मुझे ll
2965
सिर्फ मिट्टीका लिबास,
ओढ़नेकी देर हैं हमे...
फिर हर शख्स
ढूंढेगा हमें,
आँखोंमें नमी लेकर.......