4116
ना जाने कौन
बन गया,
मंजिल
उनकी...
हम रास्तोंकी तरह
उनके,
कदमोंमें
रह गये.......
4117
सवाल कुछ भी
हो,
जबाब तुम
ही हो...
रास्ता कोई भी
हो,
मंजिल तुम
ही हो...!
4118
हर शाम कह
जाती हैं एक
कहानी,
हर सुबह ले
आती हैं एक
नई कहानी;
रास्ते तो बदलते
हैं हर दिन
लेकिन,
मंजिल रह जाती
हैं वहीं पुरानी...!
4119
जिंदगीका रास्ता,
बना बनाया नहीं
मिलता;
जिसने जैसा रास्ता
बनाया,
उसे वैसी
मंजिल मिली...!
4120
बहुत ही नाजोसे चूमा उसने,
लबोंको मेरे
मरते वक्त;
कहने लगे मंजिल
आखिरी हैं,
रास्तेमें कहीं प्यास
ना लग जाये...!!!