11 April 2019

4106 - 4110 सुकून दर्द उम्र बंजर जिंदगी बे-रुख़ी जख्म कफ़न अज़ीज़ आँख याद शायरी


4106
खाली पलकें झुका देनेसे,
नींद नही आती हैं जनाब...
सोते वो लोग हैं जिनके पास,
किसीकी यादें नहीं होती...!

4107
तुम आँखोकी,
पलकोंसी हो गई हो...
के मिले बिना,
सुकून ही नही आता...!

4108
तमाम उम्र जो की,
हमसे बे-रुख़ी सबने...
कफ़नमें हम भी अज़ीज़ोंसे,
मुँह छुपाके चले ll
                              मीर अनीस

4109
बहुतसा पानी छुपाया हैं,
मैने अपनी पलकोंमें...
जिंदगी लम्बी बहुत हैं,
क्या पता कब प्यास लग जाए...

4110
पलकोंके किनारे,
दर्द बंजरसे पड़ा हैं;
कोई ऐसा जख्म दो आज,
फिर हमें जी भरके रोना हैं...

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