24 April 2019

4176 - 4180 दिल दुनिया आँख निगाह आदत रिश्ते लिबास साँस जनाजा फिक्र वसीयत हैसियत शायरी


4176
झटसे बदल दूं,
इतनी हैसियत आदत हैं मेरी;
रिश्ते हों या लिबास,
मैं बरसों चलाता हूँ.......!

4177
इन्सानियत दिलमें होती हैं,
हैसियतमें नहीं...
ऊपरवाला केवल 'कर्म',
देखता हैं वसीयत नहीं...

4178
आँखोंपर उनकी निगाहोंने,
दस्तख़त क्या किए...
हमने साँसोंकी वसीयत,
उनके नाम कर दी.......!

4179
सुख दुःख निभाना,
तो कोई फूलोसे सीखे...
बरात हो या जनाजा,
साथ जरुर देते हैं.......!

4180
फिक्रमें होते हैं,
तो खुद जलते हैं...
बेफिक्र होते हैं,
तो दुनिया जलती हैं.......!

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