13 April 2019

4121 - 4125 नेकी जिंदगी धूप छाँव घाव रिश्ते नादां साथ सफ़र गम कहानी यार क़ब्र तलाश शायरी


4121
जिसके बदले,
तुम मिल जाओ;
मैं ऐसी किसी एक,
नेकीकी तलाशमें हूँ...

4122
जिंदगीकी धूपमें,
छाँव तलाशता हूँ...
कहाँसे टूट गये ये रिश्ते,
वो घाव तलाशता हूँ.......

4123
हम नादां थे जो उन्हें,
हमसफ़र समझ बैठे;
वो चलते थे मेरे साथपर,
किसी औरकी तलाशमें...

4124
जाने कबसे तलाश थी,
एक ऐसे रहगुजरकी...
जिससे गम भी बाँट ले और,
कहानी भी बतानी पड़े...

4125
तलाश--यारमें,
उड़ता हुआ ग़ुबार हूँ मैं;
पड़ी हैं लाश मेरी और,
क़ब्रसे फ़रार हूँ मैं...!

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