16 April 2019

4136 - 4140 ज़िन्दगी सुख निगाह वक्त राहत राहें रहबर मंजिल तलाश भीड़ वजूद शायरी


4136
तुमसे मिलनेसे पहले,
ज़िन्दगी... ज़िन्दगी कहाँ थी;
एक खुला आसमान था,
एक बे'परवाह उड़ान थी और...
निगाहोंमें ना'मालूमसी तलाश...

4137
मैं निकला सुखकी तलाशमें,
रस्तेमें खड़े दुखोने कहा;
हमें साथ लिए बिना,
सुखोंका पता नहीं मिलता जनाब...

4138
मत कर तलाश मंजिलोंकी,
खुदा खुद ही मंजिल दिखा देता हैं;
यूँ तो मरता नहीं कोई किसीके बिना...
वक्त सबको जीना सिखा देता हैं...

4139
दरिया तलाश कर, ना समन्दर तलाश कर,
राहत जहाँ मिले तुझे वो घर तलाश कर,
लोगोके पीछे चलनेसे कुछ फायदा नही,
जो राहें हक दिखाऐ वो रहबर तलाश कर...

4140
ढूंढ तो लेते उनको हम भी,
शहरमें भीड़ इतनी भी थी, साहब...
पर रोक दी तलाश हमने,
क्योंकि वो खोये नहीं थे, बदल गये थे...

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