4126
यूँ तो ज़रा-सी खरोच
थी वो...
मग़र तुम्हारी आहने,
जख़्म बहुत गहरा
कर दिया...
4127
चलिए...
तलाशते हैं... कोई तरीका
ऐसा,
मंद "हवा"
भी चले...
और "चिराग"
भी जले.......!
4128
उम्रभर हम उन्हे
तलाशते रहे...
और वो हैं के मेरे रूहमे बसे थे...!
4129
दुनिया तेरे वजूदको,
करती रही
तलाश...
हमने तेरे ख़यालको,
दुनिया बना
लिया...!
4130
हमारी तलाश तुमसे
शुरू होती हैं,
और तुमपे
ही खत्म हो
जाती हैं...!
शायद हमारी दुनिया,
तुम
तक ही सीमित
हैं.......!
भाग्यश्री
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