30 April 2019

4186 - 4190 अंदाज फिदा फनाह रोना इज़हार बैचैन इश्क़ अल्फाज़ शख़्स शोर चीख खामोशी शायरी


4186
बडा ही खामोशसा अंदाज हैं तेरा...
समझ नहीं आता,
फिदा हो जाऊँ...
या फनाह हो जाऊँ.......!

4187
काश तू सुन पाता,
खामोश सिसकियाँ मेरी;
आवाज़ करके रोना तो,
मुझे आज भी नहीं आता...

4188
इज़हारे इश्क़का,
मज़ा तो तब हैं...
मैं खामोश रहूँ,
और वो बैचैन.......!

4189
ये जो खामोशसे,
अल्फाज़ लिखे हैं ना;
पढना कभी ध्यानसे,
चीखते कमाल हैं.......!

4190
लोग शोरसे,
जाग जाते हैं और;
मुझे एक शख़्सकी खामोशी...
सोने नहीं देती.......!

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