4616
जबसे देखा
हैं तेरी आँखोंमे,
कोई भी आईना
सच्चा नहीं लगता...
तेरी मोहब्बतमे ऐसे
हुए दीवानें,
तुम्हें
कोई और देखें
अच्छा नहीं लगता...!
4617
आईना उससे छीन
लाया हूँ...
खुदको नजरे
लगाती रहती हैं हरदम.......
4618
आईना फैला रहा
हैं,
खुदफरेबीका
ये मर्ज...
हर किसीसे
कह रहा हैं,
आपसा कोई
नहीं...।
4619
लफ्ज ही होते
हैं,
इंसानका
आईना...
शक्लका क्या
हैं,
वो तो उम्र
और हालातके
साथ...
अक्सर बदल जाती
हैं...!
4620
घरका आईना
भी,
हक़ ज़ता रहा
हैं...
ख़ुद तो वैसा
ही हैं,
उम्र मेरी बता
रहा हैं...!