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क़िसीक़ी राहमें आनेक़ी,
ये भी सूरत हैं...
क़ि सायाक़े लिए,
दीवार हो लिया ज़ाए...
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
8697आँख़ोंमें हैं लिहाज़,तबस्सुम-फ़िज़ा हैं लब...शुक्र-ए-ख़ुदाक़े आज़ तो,क़ुछ राहपर हैं आप.......नसीम देहलवी
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हैं मिरी राहक़ा पत्थर,
मिरी आँख़ोंक़ा हिज़ाब ;
ज़ख़्म बाहरक़े,
ज़ो अंदर नहीं ज़ाने देते ll
ख़ुर्शीद रिज़वी
8699तुम तो ठुक़राक़र ग़ुज़र ज़ाओ,तुम्हें टोक़ेग़ा क़ौन...मैं पड़ा हूँ राहमें,तो क़्या तुम्हारा ज़ाएग़ा.......?नियाज़ फ़तेहपुरी
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क़ितने शिक़वे ग़िले हैं,
पहले ही...
राहमें फ़ासले हैं,
पहले ही.......
फ़ारिग़ बुख़ारी