8791
ज़माना अब नया आया,
नई राहें नई मंज़िल...
हर इक़ राहीक़ो अपना चाहिए,
ख़ुद राहबर होना.......
ताज़ पयामी
8792दिलक़ी राहें,ज़ुदा हैं दुनियासे...क़ोई भी,राहबर नहीं होता...फ़रहत क़ानपुरी
8793
आख़िरक़ो राहबरने,
ठिक़ाने लग़ा दिया...
ख़ुद अपनी राह ली,
मुझे रस्ता बता दिया...!
नातिक़ ग़ुलावठी
8794क़हीं ज़ुल्मतोंमें घिरक़र,हैं तलाश-ए-दश्त-ए-रहबर...क़हीं ज़ग़मग़ा उठी हैं,मिरे नक़्श-ए-पासे राहें.......मज़रूह सुल्तानपुरी
8795
न छेड़ ऐ निक़हत-ए-बाद-ए-बहारी,
राह लग़ अपनी...
तुझे अटख़ेलियाँ सूझी हैं,
हम बेज़ार बैठे हैं.......