5426
ना छेड़ किस्सा-ए- उल्फतका.
बड़ी लम्बी कहानी हैं...
मैं गैरोंसे नहीं हारा,
किसी अपनेकी मेहरबानी हैं...
5427
हैं ये
उल्फ़त भी
क्या बला
साहब;
इसमें झुकते
नवाब देखे
हैं...
बशीर महताब
5428
उल्फ़तमें बराबर हैं,
वफ़ा हो कि जफ़ा हो...
हर बातमें लज़्ज़त हैं,
हर बातमें लज़्ज़त हैं,
अगर दिल में मज़ा हो...
अमीर मीनाई
अमीर मीनाई
5429
साज़-ए-उल्फ़त
छिड़ रहा हैं,
आँसुओंके
साज़ पर...
मुस्कुराए हम तो
उनको,
बदगुमानी
हो गई...
जिगर मुरादाबादी
5430
खुदा करे मेरी
उल्फतमें,
तुम कुछ यूँ
उलझ जाओ...
मैं तुमको दिलमें भी सोचूँ,
मैं तुमको दिलमें भी सोचूँ,
तो तुम समझ
जाओ...
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