4 February 2020

5426 - 5430 किस्सा कहानी गैर नवाब वफ़ा जफ़ा बात लज़्ज़त आँसु बदगुमान शायरी


5426
ना छेड़ किस्सा-- उल्फतका.
बड़ी लम्बी कहानी हैं...
मैं गैरोंसे नहीं हारा,
किसी अपनेकी मेहरबानी हैं...

5427
हैं ये उल्फ़त भी क्या बला साहब;
इसमें झुकते नवाब देखे हैं...
बशीर महताब


5428
उल्फ़तमें बराबर हैं,
वफ़ा हो कि जफ़ा हो... 
हर बातमें लज़्ज़त हैं,
अगर दिल में मज़ा हो... 
                    अमीर मीनाई

5429
साज़--उल्फ़त छिड़ रहा हैं,
आँसुओंके साज़ पर...
मुस्कुराए हम तो उनको,
बदगुमानी हो गई...
जिगर मुरादाबादी


5430
खुदा करे मेरी उल्फतमें,
तुम कुछ यूँ उलझ जाओ...
मैं तुमको दिलमें भी सोचूँ,
तो तुम समझ जाओ...

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