14 February 2020

5466 - 5470 सुलझ गांठ हिसाब सफल उसूल फिजूल मोहताज खामोश ज़िन्दगी रिश्ता शायरी


5466
जब तौलते हो रिश्तोंको,
सच बताना...
दूसरे पलड़ेमें,
क्या रखते हो...!

5467
केवल जिद्की,
एक गांठ छूट जाए;
तो उलझे हुए सभी,
सुलझ जाए...

5468
रिश्तोंमें ना रखा करो हिसाब,
नफ़े और नुकसानका...
ज़िन्दगीकी पाठशालामें,
गणितका कमज़ोर होना अच्छा हैं...!

5469
सफल रिश्तोंके,
यही उसूल हैं l
वो सब भूलिए,
जो फिजूल हैं ll

5470
रिश्तोंको शब्दोंका,
मोहताज ना बनाइये...
अगर अपना कोई खामोश हैं तो,
खुदही आवाज लगाइये.......!

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