5446
मसरूफियतके दौरमें,
खबरही नहीं हुई...
उठकर बड़े करीबसे,
कुछ रिश्ते चले गए...
5447
पलोकी उधेड़बुनमें,
ना जाने कितने रिश्ते उधड़ गए;
मैं रफ़ू करता रहा,
ना जाने फिर भी अपने क्यों बिछड़ गए...
5448
सुईकी नोकपर टिके हैं सारे रिश्ते...
जरासी चूक हुई नहीं कि,
चुभकर लहूलुहान कर देते हैं.......
5449
शतरंजका शौकीन नही था,
इसलिये धोखा खा गया;
वो मोहरे चला रहे थे,
मैं रिश्ते निभा रहा था...
5450
मैले हो जाते हैं रिश्ते भी,
लिबासोंकी तरह...
कभी-कभी इनको भी,
मोहब्बतसे धोया कीजिए...
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