7 February 2020

5436 - 5440 फिक्र जिक्र अधूरा गुंज़ाइश क़ीमती किस्सा वजह कमज़ोर आज़माइशें रिश्ते शायरी


5436
आपकी "फिक्र" और "जिक्र",
करने के लिए...
हमारा कोई "रिश्ता" हो,
ये "जरूरी" तो नहीं.......!

5437
पता नहीं हमारे दरमियान,
यह कौनसा रिश्ता हैं...?
लगता हैं कि सालों पुराना,
अधूरा कोई किस्सा हैं.......!

5438
मुझे मालूम नहीं मेरे उससे,
अलग हो जानेकी वजह...
ना जाने हवाएँ तेज़ थी या,
मेरा उस शाखसे रिश्ता कमज़ोर था...?

5439
रिश्ता चाहे कोई भी हो,
हीरेक़ी तरह हो...
दिखनेमें छोटासा,
परन्तु क़ीमती और अनमोल हो...!

5440
जहाँ गुंज़ाइशें हैं,
वहीं हर रिश्ता ठहरता हैं l
आज़माइशें अक्सर,
रिश्ते तोड़ देती हैं...ll

No comments:

Post a Comment