11 February 2020

5461 - 5465 लम्हें कदम जख्म वहम कसूर थकान नाराज साज़िश रिश्ते शायरी


5461
कुछ रूठे हुए लम्हें,
कुछ टूटे हुए रिश्ते...
हर कदमपर काँच बनकर,
जख्म देते हैं.......

5462
वहमसे भी अक्सर,
खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते;
कसूर हर बार,
गल्तियोंका नही होता...

5463
रिश्तोंके इस जोड़-तोड़में,
हम भी ऐसे टूटे हैं...
कभी रूठे थे हमसे रिश्ते,
अब हम भी रूठे रूठे हैं...

5464
थकानसी होने लगी हैं,
रोज-रोज कोई ना कोई,
नाराज हो ही जाता हैं...

5465
रिश्तोंके दलदलसे,
हम कैसे निकलेंगे...
जब हर साज़िशके पीछे,
अपने निकलेंगे.......

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